बांग्लादेश में भड़की हिंसा के बीच फंसे भारतीय तबला वादक मैनाक बिस्वास ने अपनी आपबीती साझा करते हुए बताया कि हालात इतने भयावह हो गए थे कि उन्हें अपनी जान बचाने के लिए न सिर्फ नाम बदलना पड़ा, बल्कि लंबे समय तक चुप्पी भी साधनी पड़ी। ढाका में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान कार्यक्रम स्थल पर हुए हमले के बाद हालात अचानक बिगड़ गए और वहां मौजूद कलाकारों की सुरक्षा खतरे में पड़ गई।

मैनाक बिस्वास के मुताबिक, हिंसा के बाद माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया था और बाहरी लोगों को लेकर शक बढ़ गया था। ऐसे में उन्होंने अपनी पहचान छुपाए रखी और खुद को स्थानीय बताने की कोशिश की। उन्होंने बताया कि कई मौकों पर उनसे पूछताछ भी हुई, लेकिन उन्होंने संयम से काम लिया और किसी तरह खुद को सुरक्षित रखा।

उन्होंने आगे बताया कि हालात सामान्य होने का इंतजार करते हुए उन्हें कई दिन डर और अनिश्चितता के साए में बिताने पड़े। अंततः भारतीय दूतावास और स्थानीय लोगों की मदद से वह सुरक्षित तरीके से भारत लौटने में सफल रहे। मैनाक बिस्वास ने कहा कि यह अनुभव उनके जीवन का सबसे कठिन दौर था, जिसे वह कभी नहीं भूल पाएंगे।

बांग्लादेश में फैली हिंसा के बीच भारतीय कलाकारों के लिए हालात किस कदर भयावह हो गए थे, इसकी रोंगटे खड़े कर देने वाली तस्वीर अब भारत लौटे एक युवा तबला वादक की आपबीती से सामने आई है। ढाका में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान अचानक बिगड़े हालात ने कलाकारों को असहाय और डरे हुए हालात में छोड़ दिया।

हिंसा भड़कने के बाद बाहरी लोगों को लेकर संदेह बढ़ गया, जिसके चलते भारतीय कलाकारों को अपनी पहचान छुपाने पर मजबूर होना पड़ा। जान बचाने के लिए न केवल नाम बदलना पड़ा, बल्कि लंबे समय तक चुप्पी साधकर रहना ही उनकी सबसे बड़ी सुरक्षा बन गई। हर कदम पर यह डर बना रहा कि कहीं पहचान उजागर न हो जाए।

आखिरकार कई दिनों की अनिश्चितता और भय के बाद कलाकार किसी तरह सुरक्षित भारत लौटने में सफल रहे। यह कहानी सिर्फ एक कलाकार की नहीं है, बल्कि उस डर, मजबूरी और संघर्ष की दास्तान है, जो हिंसा के माहौल में फंसे आम लोगों को हर पल झेलनी पड़ती है।

तबला वादक मैनाक बिस्वास ने बताया कि ढाका में हालात अचानक बेकाबू हो गए थे। जिन सरोद कलाकार के साथ वह बांग्लादेश पहुंचे थे, वे किसी तरह वहां से निकलने में सफल रहे, लेकिन बाकी कलाकारों की टीम हिंसा के बीच फंस गई। शहर में लगातार हो रहे प्रदर्शनों, तोड़फोड़ और भारत-विरोधी माहौल ने हालात को और भी डरावना बना दिया।

मैनाक के मुताबिक, सुरक्षा के डर से उन्हें करीब 48 घंटे तक होटल में छिपकर रहना पड़ा। इस दौरान बाहर निकलना जोखिम भरा था और हर कदम सोच-समझकर उठाना पड़ता था। जब मजबूरी में बाहर निकलना पड़ा, तो उन्होंने अपनी भारतीय पहचान छुपाई और स्थानीय नाम का सहारा लिया ताकि किसी को शक न हो।

उन्होंने बताया कि यह समय उनके जीवन का सबसे कठिन दौर था, जहां हर पल जान का खतरा महसूस हो रहा था। सतर्कता और संयम के साथ किसी तरह हालात संभाले गए, जिसके बाद वे सुरक्षित भारत लौट सके।

कार्यक्रम रद्द, हिंसक भीड़ का कहर

ढाका के धनमंडी इलाके में स्थित एक सांस्कृतिक केंद्र में प्रस्तावित संगीत कार्यक्रम उस समय रद्द करना पड़ा, जब वहां हिंसक भीड़ ने हमला कर दिया। अचानक हुए इस हमले से अफरा-तफरी मच गई और कलाकारों की सुरक्षा पर गंभीर खतरा पैदा हो गया। हालात बिगड़ते देख कार्यक्रम को तत्काल रद्द कर दिया गया।

सरोद वादक शिराज़ अली खान किसी तरह सुरक्षित कोलकाता लौटने में सफल रहे, लेकिन उनकी मां समेत बाकी कलाकारों की टीम, जिसमें तबला वादक मैनाक बिस्वास भी शामिल थे, वहीं फंस गई। हमलावरों ने मंच पर रखे संगीत वाद्ययंत्रों को नुकसान पहुंचाया और परिसर में भारी तोड़फोड़ की।

घटना के बाद पूरे इलाके में तनाव का माहौल बन गया और कलाकारों को सुरक्षित स्थान पर शरण लेनी पड़ी। यह हमला न सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन पर था, बल्कि कलाकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े कर गया।

पहचान छुपाना बना जान बचाने का जरिया

मैनाक बिस्वास ने बताया कि हालात इतने नाजुक थे कि बाहर निकलते समय उन्होंने अपनी भारतीय पहचान जाहिर होने ही नहीं दी। टैक्सी बुक कराते वक्त उन्होंने अपना नाम बदल लिया और इस पूरे दौरान होटल कर्मचारियों की मदद ली। उनका कहना है कि ढाका की सड़कों पर भारत-विरोधी माहौल साफ तौर पर महसूस किया जा सकता था। उन्हें डर था कि अगर बातचीत के दौरान भाषा या लहजे से पहचान उजागर हो गई, तो स्थिति और भी खतरनाक हो सकती थी। ऐसे में चुप रहना ही उनकी सबसे बड़ी ढाल बन गया।

कैसे भड़की हिंसा?

बताया जा रहा है कि यह हिंसा इंकलाब मंच से जुड़े प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद भड़की। जुलाई 2024 में हुए आंदोलन से जुड़े इस नेता की मौत की खबर फैलते ही देश के कई हिस्सों में तनाव बढ़ गया। हालात इतने बिगड़ गए कि मीडिया संस्थानों और सांस्कृतिक केंद्रों को भी निशाना बनाया गया। बांग्लादेश की राजनीति में जारी अस्थिरता और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल से जुड़े विवादों ने माहौल को और अधिक संवेदनशील बना दिया, जिससे हालात लगातार बिगड़ते चले गए।

एयरपोर्ट पहुंचते ही मिली राहत

टीम के बाकी सदस्य कई घंटों तक डर और अनिश्चितता के साए में एयरपोर्ट लाउंज में बैठे रहे। शहर की सड़कों पर लगातार हो रहे प्रदर्शनों और अचानक भीड़ जुटने की खबरों के बीच हर कदम बेहद सोच-समझकर उठाना पड़ा। मैनाक बिस्वास को अपने तबले की भी गहरी चिंता थी, क्योंकि उन्होंने हिंसा के दौरान संगीत वाद्ययंत्रों को तोड़े जाने की तस्वीरें देखी थीं, जिससे आशंका और बढ़ गई थी।

आखिरकार जब वे कोलकाता एयरपोर्ट पहुंचे और अपना तबला सुरक्षित सलामत मिला, तब जाकर उन्हें सुकून का एहसास हुआ। उस पल उन्हें महसूस हुआ कि खतरे का दौर पीछे छूट चुका है।

कोलकाता लौटने के बाद मैनाक बिस्वास ने कहा कि वह जल्द ही एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश की वह भयावह यादें उन्हें लंबे समय तक परेशान करती रहेंगी। उन्होंने बताया कि भाषा और संस्कृति की समानता के बावजूद जो डर उन्होंने वहां महसूस किया, उसने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया है। हालात पूरी तरह सामान्य होने तक वह दोबारा वहां जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

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