नई दिल्ली।
अरावली पर्वतमाला केवल चट्टानों और पहाड़ियों की श्रृंखला नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिम भारत की जीवनरेखा है। गुजरात से राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक फैली यह दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अरावली न होती, तो आज उत्तर भारत का बड़ा हिस्सा जल संकट, रेगिस्तान और पर्यावरणीय तबाही की चपेट में होता।
🌍 29 जिलों और 5 करोड़ लोगों के लिए जल सुरक्षा कवच
अरावली पहाड़ियाँ वर्षा जल को रोककर उसे जमीन के भीतर पहुंचाती हैं, जिससे भूजल रिचार्ज होता है। राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर के कई जिले अपनी पानी की जरूरतों के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अरावली पर निर्भर हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, अरावली के बिना:
- कुएँ और बोरवेल तेजी से सूख जाते
- नदियाँ और झीलें मौसमी बनकर खत्म हो जातीं
- लगभग 5 करोड़ लोगों के सामने गंभीर पेयजल संकट खड़ा हो जाता
🌬️ दिल्ली तक पहुँच जाता थार का रेगिस्तान
अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकने वाली प्राकृतिक दीवार है। अगर यह न होती, तो रेगिस्तान की रेत और धूल दिल्ली-एनसीआर तक पहुंच चुकी होती।
इसके प्रभाव:
- धूल भरी आँधियों में बढ़ोतरी
- तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव
- दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवा और अधिक जहरीली
आज प्रदूषण से जूझ रही राजधानी की स्थिति और भयावह हो सकती थी।
🐅 20 से अधिक अभयारण्यों का अस्तित्व दांव पर
अरावली क्षेत्र में 20 से ज्यादा वन्यजीव अभयारण्य और संरक्षित वन क्षेत्र स्थित हैं। इनमें असोला-भट्टी, सरिस्का, भिंडावास जैसे इलाके शामिल हैं।
अरावली न होती तो:
- जैव विविधता को भारी नुकसान होता
- तेंदुआ, सियार, नीलगाय और सैकड़ों पक्षी प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर पहुँच जातीं
- मानव-वन्यजीव संघर्ष कई गुना बढ़ जाता
🌾 खेती, पशुपालन और ग्रामीण जीवन पर संकट
अरावली की मिट्टी और वनस्पति वर्षा जल को रोककर खेतों तक नमी पहुंचाती है। इससे खेती और पशुपालन संभव होता है।
इसके बिना:
- सूखा और फसल नुकसान आम हो जाता
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ती
- बड़े पैमाने पर शहरों की ओर पलायन होता
🏙️ शहर बन जाते रहने लायक नहीं
अरावली गर्म हवाओं को रोकने और तापमान संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती है। इसके अभाव में:
- शहर “हीट आइलैंड” बन जाते
- गर्मी असहनीय स्तर तक पहुँच जाती
- जीवन गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती
⚠️ आज खुद खतरे में है अरावली
विडंबना यह है कि जो अरावली हमें बचाती रही, वही आज अवैध खनन, अंधाधुंध निर्माण और जंगलों की कटाई से कमजोर हो रही है। पर्यावरणविद चेतावनी दे रहे हैं कि अगर समय रहते संरक्षण नहीं हुआ, तो इसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ेंगे।
🌱 समाधान और आगे का रास्ता
विशेषज्ञों के अनुसार जरूरी है:
- अरावली क्षेत्र में अवैध खनन पर सख्त रोक
- बड़े पैमाने पर देशी प्रजातियों का वृक्षारोपण
- वन्यजीव कॉरिडोर का संरक्षण
- जनभागीदारी और कड़े पर्यावरण कानून
🔴 निष्कर्ष
अगर अरावली न होती, तो न पानी सुरक्षित होता, न जंगल बचते, न हवा सांस लेने लायक रहती।
अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि भारत के पर्यावरण की रीढ़ है। इसे बचाना मतलब—आज को सुरक्षित करना और भविष्य को संवारना।